थोडासा रूमानी हो जाये
चांदनी में भीगकर
रात सुहानी हो जाए
ये रुत और ये मौसम
हमको देके इशारे बुलाये
कबसे बैठे हो तुम
अपनी आखों में मुझको समाये
आखें कबतक बातें करेगी
कुछ तो जुबानी हो जाए
सच है कबसे बैठा हु मैं
कितनी बातें दिल में छुपाये
डर हैं जब भी कह दु
अनहोनिसि न हो जाए
कहने सुनने की क्या जरुरत
जो है रूहानी हो जाए