Tuesday, August 24, 2010

कारी कारी बदरा छाई

('मियां  मल्हार'  रागात  आणि  रूपक  तालावर  रचलेली  माझी  स्वतःची  एक  चीज)

कारी  कारी  बदरा  छाई
नभ  मे  चमके  दामिनी
मोको   जियरा  डर  लागे
आओगे  कब  शामजी

ब्रज  को  त्यज  तुम  गये  जबसे
सुनी  सुनी  बासुरी
पपीहे  की  सुनी  बोली
सुनी  बन  की  मोरनी

घनन  घन घन  घटा  बरसे
बह  रही  जमुना  भरी
उमड  आयो  मनवा  ऐसे
बह  रही  अखिया  मोरी

सुरेश नायर
२०१०

उंच उंच माझा झोका

  उंच उंच माझा झोका, झोका बांधला आकाशाला झोका चढता, उतरता झाला पदर वारा-वारा झोक्याला देते वेग, पाय टेकून धरणीला लाल मातीच्या परागाचा, रंग च...