('मियां मल्हार' रागात आणि रूपक तालावर रचलेली माझी स्वतःची एक चीज)
कारी कारी बदरा छाई
नभ मे चमके दामिनी
मोको जियरा डर लागे
आओगे कब शामजी
ब्रज को त्यज तुम गये जबसे
सुनी सुनी बासुरी
पपीहे की सुनी बोली
सुनी बन की मोरनी
घनन घन घन घटा बरसे
बह रही जमुना भरी
उमड आयो मनवा ऐसे
बह रही अखिया मोरी
सुरेश नायर
२०१०
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